त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥ दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥ त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभ�
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥ दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥ त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभ�